गाड़ी में पेट्रोल भरवाने के चक्कर में हमें कई बार पेट्रोल पंपों पर काफी लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है। इस दौरान अनचाहे में ही हम पेट्रोल में मिले रहने वाले बेंजीन नामक गैस को सांसों के जरिए अपने फेफड़ों तक पहुंचा रहे होते हैं। गाड़ी में पेट्रोल डालते समय इसके आसपास रहने से भी इसके हमारे शरीर में जाने की संभावनाएं ज्यादा बढ़ जाती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर एक सीमा से ज्यादा बेंजीन मानव शरीर में जाती है तो यह कैंसर का कारण भी बन सकती है। कम मात्रा भी यह लोगों में दिल की धड़कन बढ़ने, बेहोशी, सिरदर्द या भ्रम जैसी स्थिति पैदा कर सकती है।
कैसे करता है शरीर में प्रवेश
दरअसल, जब पेट्रोल हवा के संपर्क में आता है, तो बेंजीन की मात्रा हवा में घुलकर हमारे शरीर में प्रवेश करने लगती है। पेट्रोल पंपों पर ज्यादा समय तक इंतजार करने की स्थिति में लोगों के इसके ज्यादा संपर्क में आने की संभावना बन जाती है। अगर बाइक पर बैठे-बैठे पेट्रोल भरवा रहे हैं, तो पेट्रोल के हवा में मिक्स होकर सीधे बाइक सवार की नाक के जरिए उसके फेफड़ों तक पहुंचने की संभावना बन जाती है।
सामान्य ग्राहकों की तुलना में इसका सबसे ज्यादा नुकसान उन कर्मचारियों को भुगतना पड़ता है, जो पेट्रोल पंप पर आठ से 12 घंटे तक की ड्यूटी करते हैं। जो कर्मचारी बड़ें टैंकों में पेट्रोल भरने का काम करते हैं, या रिफाइनरीज में काम करते हैं, उनके इस गैस के संपर्क में आने की सबसे ज्यादा संभावना होती है।
बचने के ये हैं निर्देश
दरअसल, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशा-निर्देशों के मुताबिक पेट्रोल पंपों पर पेट्रोल भरने वाले नोजल के साथ स्टेज-1 और 2 के वेपर रिकवरी सिस्टम लगाना जरूरी है। यह नोजल के साथ ही लगता है और भाप बनकर उड़ने वाली गैस को वापस पेट्रोल में मिक्स कर देता है। नोजल पर रबर की अच्छी कवर लगी रहने से भी पेट्रोल गाड़ी में डालने के समय कम भाप उड़ने से नुकसान कम हो जाता है।