आठ साल के इंतजार के बाद भारतीय वायुसेना को अंबाला एयरफोर्स स्टेशन पर पांच राफेल लड़ाकू विमान मिल गए हैं। 2022 तक शेष और 31 राफेल के मिल जाने का अनुमान है.
चीन और पाकिस्तान से दोहरी चुनौती का आकलन करके भारतीय वायुसेना ने 1998 में चौथी पीढ़ी के 126 लड़ाकू विमानों की आवश्यकता बताई थी। कारगिल रिव्यू कमेटी ने भी वायुसेना की मांग के पक्ष में राय दी थी।
वायुसेना के अधिकारियों के अनुसार इस कड़ी में अभी केवल 36 लड़ाकू विमानों का सौदा हुआ है। जबकि मौजूदा चुनौतियों को देखते हुए अभी कम से कम इस स्तर के 150 युद्धक विमानों की आवश्यकता है। अभी वायुसेना की क्षमता 40 स्क्वॉड्रन से काफी कम है। इस क्षमता तक पहुंचने के लिए सौ से अधिक फाइटर जेटों की आवश्यकता है।
वायुसेना ने 2007 में इन विमानों के लिए अंतरराष्ट्रीय आमंत्रण प्रस्ताव मंगाए। इसमें अमेरिका (एफ-16, एफ-18 सुपर हार्नेट), रूस (मिग-35), फ्रांस (राफेल), ब्रिटेन (ग्रिपेन), यूरोपीय देशों (यूरोफाइटर टाइफून) की छह अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के फाइटरजेटों ने हिस्सा लिया। कड़ी स्पर्धा में राफेल एल-1 रहा और 2012 में फ्रांस के साथ 126 युद्धक विमान लेने का सौदा फाइनल मोड में आया। सौदे की शर्तों के तहत 18 विमान तैयार हालत में और 108 विमान तकनीकी हस्तांतरण के जरिए भारत में निर्मित करने की रूपरेखा तैयार हुई। इस सौदे के तहत फ्रांस को पहला विमान 2019 में ही भारत को देना था। लेकिन देश में सरकार बदलने के बाद एक बार फिर सौदे का प्रारूप बदल गया। अंतत: भारत ने फ्रांस से तैयार हालत में दो स्क्वॉड्रन (36) राफेल लड़ाकू विमानों को लेने का सौदा किया। इस तरह से 2020 में पहली खेप के पांच राफेल लड़ाकू विमान फ्रांस की कंपनी डसॉल्ट से अंबाला पहुंच सके हैं।