ऑनलाइन शिक्षा को लेकर भारत में शिक्षाविदों और छात्रों का मिलाजुला अनुभव रहा है। एक प्रतिष्ठित स्कूल की कंप्यूटर शिक्षिका मुक्ता शर्मा ने बताया की ऑनलाइन पढ़ाई की तरफ शिफ्ट होना इतना आसान नहीं था। उन्होंने बताया की लॉकडाउन छुट्टियों के दौरान हम ऑनलाइन पर शिफ्ट हो गए। सभी कक्षाएं या तो गूगल मीट या ज़ूम पर हो रही हैं। मुक्ता शर्मा ने बताया की चुनिंदा शहरी स्कूलों के ऑनलाइन क्लासेज़ कराने और इनकी पहुंच सीमित होने के चलते शिक्षाविदों को हर तरह के आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि वाले बच्चों के लिए पढ़ाई के इनोवेटिव तरीकों को ढूंढने की चुनौती पैदा हो गई है.
'ऑनलाइन कक्षाएं एक अस्थाई इंतज़ाम से ज़्यादा कुछ नहीं'
देश के ज़्यादातर बड़े निजी स्कूलों ने जूम क्लासेज़ का सहारा लिया है, लेकिन, बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि यह सब एक अस्थाई इंतज़ाम से ज़्यादा कुछ नहीं है.एक छात्रा के पिता शिव चरण शर्मा ने बताया की उनकी बेटी ऑनलाइन क्लास ले रही हैं , लेकिन इस ऑनलाइन पढ़ाई-लिखाई का अनुभव बस ठीक ही है। हर बच्चे पर विशेष रूप से ध्यान देने की समस्या इसमें दिखाई दे रही है।
इस तरह की बात तकरीबन हर शख्स ने बताई है, चाहे वह शिक्षक हो, छात्र या पेरेंट्स. इस महामारी ने कैंपस एक्सपीरियंस के पूरे आइडिया को ही बदल दिया है.स्कूल और यूनिवर्सिटी यह भी विचार कर रहे हैं कि खुलने के बाद वे किस तरह से काम करेंगे. साइंस के विद्यार्थियों के लिए यह थोड़ा चुनौती भरा है, क्योंकि इनमें लैब में जाकर प्रयोग करने पड़ते हैं."
सामाजिक दूरी अहम होगी और शैक्षिक संस्थानों को यूरोप, दक्षिण कोरिया के अनुभवों से सबक लेना पड़ेगा. ऑनलाइन शिक्षा भले ही एक नया ट्रेंड बनकर उभर रही है, लेकिन हाशिए पर मौजूद बच्चों के लिए किस तरह से इसे मुमकिन बनाया जाएगा?
कुछ अन्य स्कूलों ने छात्रों के बिल्डिंग या कक्षा में प्रवेश के दौरान उनका तापमान लेना अनिवार्य बना दिया है. लेकिन, भारत जैसे सामाजिक और आर्थिक विविधता वाले देश में अलग-अलग छात्रों को देखते हुए शिक्षा का भविष्य शायद कुछ अलग रहेगा.