Sunday, November 3, 2019

हरियाणवी लोकगीतों में हरियाणवी संस्कृति की महक दर्शकों ने खूब उठाया आनंद

 कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में चल रहे रत्नावली राज्य स्तरीय सांस्कृतिक समारोह के दूसरे दिन आरके सदन के मंच पर हरियाणवी लोकगीतों के माध्यम से हरियाणा की लोक संस्कृति को प्रतिभागियों ने अपने गीतों के माध्यम से प्रदर्शित किया। ठेठ हरियाणवी अंदाज में प्रस्तुत इन लोकगीतों में हरियाणा की कला, संस्कृति, वेशभूषा व बोली का एक अनूठा अंदाज देखने को मिला। खत्म हो रहे हरियाणवी लोकगीतों को कलाकारों ने अपने बोल व मुद्राओं से एक बार फिर सजीव करने का कार्य किया। इस प्रतियोगिता की शुरूआत गणेश वंदना के साथ हुई जिस तरह से भारतीय संस्कृति में शुभ की शुरूआत गणेश वंदना से होती है ठीक उसी तरह गणेश वंदना से लोकगीत शुरू हुए। आर्य पीजी कालेज की टीम ने बाबुल की धीर बधाईए लोकगीत की प्रस्तुति कर दर्शकों के मन को मोह लिया। भगवान परशुराम कालेज की टीम ने नन्हीं-नन्हीं बूंद कुुंए पे आई लोकगीत प्रस्तुत किया। यूटीडी कुरुक्षेत्र की टीम ने घरां ते न जावे, चाहे भैंस न चरावे लोकगीत प्रस्तुत किया। गांधी आदर्श कालेज समालखा की टीम ने छोरी मंगल गावन लागरी के माध्यम से अपनी प्रस्तुति दी। इस प्रतियोगिता में प्रदेशभर से 8 टीमों ने भाग लिया। प्रतियोगिता में निर्णायक मंडल की भूमिका डॉ. सतीश, अशोक वर्मा, तेजेन्द्र गिल ने निभाई। इस मौके में बड़ी संख्या में प्रतिभागी एवं विद्यार्थी मौजूद थे।




हरियाणा व हरियाणवी देश व दुनिया में अपनी बेबाक हंसी के लिए जाने जाते हैं। हरियाणवी हास्य का एक अद्भुत नजारा रविवार को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में चल रहे रत्नावली राज्य स्तरीय सांस्कृतिक समारोह में ओपन एयर थियेटर में आयोजित चुटकले प्रतियोगिता में देखने को मिला। इस प्रतियोगिता की खास बात यह रही कि प्रतिभागी, निर्णायक मंडल व दर्शकों ने लोटपोट होकर पूरे माहौल को हास्यमय बना दिया। प्रतिभागियों के चुटकुले, निर्णायक मंडल की बीच-बीच में हास्य टिप्पणियां व दर्शकों का हरियाणवी हा-हा देखने लायक था।



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