Friday, September 27, 2019

20 साल बाद संयोग, शनि अमावस्या के दिन पितृपक्ष होगा समाप्त



जब सूर्य चन्द्रमा एक राशि पर हों या एक ही नक्षत्र पर हों तो वह समय अमावस्या काल कहा जाता है। यह काल पितृ कार्यों में सर्वोत्तम होता है। विशेष रूप से जब कन्या राशि में सूर्य-चन्द्रमा की युति होती हो तो उसे अमावस्या श्राद्धपक्ष या अमावस्या अश्विन या अमावस्या कन्यागत कहा जाता है। इस दिन पितृ अपने लोक से चलकर अपने बेटे, पौत्र के घर पर आकर बैठ जाते हैं तथा श्राद्ध काल में श्राद्ध स्थल पर उपस्थित होकर ब्राह्मणों के साथ वायु रूप में भोजन करते हैं। 



धरती से पितरों को विदा करने के लिए 28 सितंबर को पितृ अमावस्या के दिन अमावस्या की संध्याकाल में किसी भी नदी किनारे तीस घी की बत्तियां बनाकर किसी भी दोने में रखकर प्रवाहित करें तथा अपने पितृं या पितृ अमावस्या पर करते हुए उन्हें विदाई दें। उनसे अपने परिवार की कुशलक्षेम का आशीर्वाद लें तथा फिर अगले वर्ष आने का निमंत्रण दें। 




हालांकि श्राद्ध पक्ष 28 सितंबर को खत्म हो जाएगा। फिर भी जिनके परिजनों ने अब तक श्राद्ध नहीं किया है, वे एक बात विशेष ध्यान रखें कि श्राद्ध दूसरे के घर में, दूसरे की भूमि में, कभी नहीं करना चाहिए। जिस भूमि पर किसी का स्वामित्व ना हो या सार्वजनिक हो उस स्थान पर श्राद्ध किया जा सकता है। 



अमावस्या के दिन जो श्राद्ध किया जाता है उसका बहुत महत्व कहा गया है। इस दिन जो भी आपके पितरों का नाम, गौत्र सहित उच्चारण करके दक्षिण दिशा की ओर मुख करके श्राद्ध करता है तथा श्रद्धापूर्वक जो भी अन्न, जल इत्यादि ब्राह्मणों को देता है तो वह उनको प्राप्त हो जाता है।


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